VMOU B. A. /B. Sc. First Year (Geography) Assignment

Table of Contents

SECTION A

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VMOU B. A. /B. Sc. First Year (Geography) Assignment

i. भूकोष को परिभाषित कीजिए?
भूकोष धरती की तीन प्रमुख खोपचय परतों में से एक है। यह पृथ्वी की आंतरिक संरचना का सबसे अंदरूनी भाग है जो ऊपरी तीन खोपचयों में सबसे गर्म होता है। भूकोष में लोहे का एक तीव्र द्रव मांगने वाला धातु होता है, जिसे निकलौंदा लोहा कहा जाता है। यह भूमंडलीय आंदोलन और मैग्मा के अभिन्न भाग का गठन करता है।

ii. प्राकृतिक लेवी क्या कहलाते हैं?
प्राकृतिक लेवी नदी तटों के निकट बने होते हैं और वे नदी के आवेग के कारण उत्तरी या दक्षिणी दिशा में बनते हैं। ये मुख्य रूप से जल प्रवाह के अधिक उच्च स्तरों पर विकसित होते हैं और नदी के तट से ऊपर उठे होते हैं।

iii. चक्रवात को परिभाषित कीजिए?
चक्रवात एक प्राकृतिक प्रकोप है जो जल में उत्पन्न होता है और उच्च वायुदाब के कारण घूमता है। यह आधुनिक विज्ञान में एक बहुत ही रोमांचक विषय है और इसकी उपयोगिता आधुनिक वायुमंडलीय अध्ययन में होती है।

iv. दैनिक ज्वार को परिभाषित कीजिए?
दैनिक ज्वार एक प्रकार की तैराकी होती है जो दिन-रात के चक्र में आता है। यह ज्वार समुद्रों और समुद्री किनारों के करीब सबसे अधिक महसूस की जाती है और इसका कारण चंद्रमा की ग्रहणशक्ति का होता है।



SECTION B

प्रश्न 2:प्रत्यास्थ पुनर्बलन सिद्धांत पर टिप्पणी कीजिए

लचीला पुनर्बलन सिद्धांत भूकंप विज्ञान में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी की पपड़ी में संचालित तनाव तब तक जमा होता रहता है जब तक कि चट्टानें अपनी लचीलापन सीमा तक नहीं पहुंच जातीं। जब तनाव लचीलापन सीमा को पार कर जाता है, तो चट्टानें अचानक टूट जाती हैं और संग्रहीत ऊर्जा को भूकंपीय तरंगों के रूप में मुक्त कर देती हैं। इस प्रक्रिया के कारण ही भूकंप आते हैं। भूकंप के बाद, चट्टानें एक नए संतुलन की स्थिति में आ जाती हैं। इस सिद्धांत को सबसे पहले हैरी फील्डिंग रीड ने 1906 के सैन फ्रांसिस्को भूकंप के बाद प्रस्तुत किया था।

प्रश्न 3: रासायनिक अपक्षय का वर्णन कीजिए

रासायनिक अपक्षय वह प्रक्रिया है जिसमें चट्टानों और खनिजों का विघटन रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से होता है। इसमें मुख्य रूप से जल, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और जैविक एसिड शामिल होते हैं। रासायनिक अपक्षय के प्रमुख प्रकारों में जलयोजन, हाइड्रोलिसिस, ऑक्सीकरण और कार्बोनेशन शामिल हैं। उदाहरण के लिए, फेल्डस्पार खनिज हाइड्रोलिसिस प्रक्रिया के माध्यम से मिट्टी के खनिज में परिवर्तित हो जाता है। रासायनिक अपक्षय चट्टानों की संरचना को बदल देती है और इसे मिट्टी में परिवर्तित कर देती है, जो पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है।

प्रश्न 4: संवहनीय वर्षा पर टिप्पणी कीजिए

संवहनीय वर्षा वह वर्षा होती है जो संवहन के कारण होती है। जब पृथ्वी की सतह गर्म होती है, तो सतह के पास की हवा भी गर्म होकर ऊपर उठती है। इस उठती हुई हवा में नमी होती है, जो ऊँचाई पर पहुँचकर ठंडी हो जाती है और संघनन के कारण वर्षा के रूप में गिरती है। संवहनीय वर्षा आमतौर पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ दिन में सूर्य की तीव्र गर्मी सतह को गर्म करती है। यह वर्षा प्रायः भारी और अचानक होती है और दोपहर या शाम के समय होती है।

प्रश्न 5: महासागरीय निक्षेपों के स्रोत बताइए

महासागरीय निक्षेपों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं:

  1. जैविक निक्षेप: समुद्री जीवों के अवशेष, जैसे शैल और कंकाल।
  2. स्थलीय निक्षेप: नदियों, वायु और ग्लेशियरों द्वारा लाए गए मिट्टी और खनिज।
  3. हाइड्रोजनस निक्षेप: समुद्री जल में घुले हुए खनिज जो रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से तलछट में परिवर्तित हो जाते हैं।
  4. ज्वालामुखीय निक्षेप: समुद्री ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पन्न राख और लावा।
    ये निक्षेप महासागरों के तल में जमा होकर विविध प्रकार की संरचनाओं का निर्माण करते हैं, जो समुद्री पारिस्थितिकी और भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के अध्ययन में महत्वपूर्ण हैं।

SECTION C

प्रश्न 6: भौतिक भूगोल की प्रकृति एवं विषय क्षेत्र बताइये

भौतिक भूगोल पृथ्वी की सतह और उसकी प्राकृतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन है। यह भूगोल की एक शाखा है जो पृथ्वी के भौतिक स्वरूप, संरचना, और प्रक्रियाओं को समझने पर केंद्रित है। इसकी प्रकृति और विषय क्षेत्र को विस्तार से समझाने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है:

भौतिक भूगोल की प्रकृति

  1. विज्ञान आधारित: भौतिक भूगोल वैज्ञानिक विधियों और सिद्धांतों पर आधारित है। यह अवलोकन, प्रयोग और मॉडलिंग का उपयोग करता है।
  2. सतत परिवर्तन: यह पृथ्वी की सतह पर हो रहे सतत परिवर्तनों का अध्ययन करता है, जैसे भूगर्भीय, जलवायु, और समुद्री प्रक्रियाएं।
  3. प्राकृतिक प्रक्रियाएं: इसमें प्राकृतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन शामिल है, जैसे पहाड़ी निर्माण, ज्वालामुखी गतिविधियाँ, जलवायु परिवर्तन, और समुद्र की लहरें।
  4. समग्र दृष्टिकोण: भौतिक भूगोल पृथ्वी के विभिन्न तत्वों और प्रक्रियाओं के बीच संबंधों को समझने का प्रयास करता है।

भौतिक भूगोल का विषय क्षेत्र

  1. जलवायु विज्ञान (Climatology): यह पृथ्वी की जलवायु और मौसम के पैटर्न का अध्ययन है। इसमें वायुमंडलीय प्रक्रियाएं, तापमान, वर्षा, वायुमंडलीय दबाव और हवाएं शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव भी इसके अंतर्गत आते हैं।
  2. भूमिगत प्रक्रियाएं (Geomorphology): यह पृथ्वी की सतह के स्वरूपों और उनके निर्माण की प्रक्रियाओं का अध्ययन है। इसमें पर्वत, घाटियाँ, मैदान, नदियाँ, ग्लेशियर, और तटीय क्षेत्र शामिल हैं। भू-आकृतिक प्रक्रियाएं जैसे अपक्षय, क्षरण, संचयन, और प्लेट विवर्तनिक गतिविधियां महत्वपूर्ण विषय हैं।
  3. जल विज्ञान (Hydrology): यह पृथ्वी पर जल के वितरण और संचलन का अध्ययन है। इसमें नदियाँ, झीलें, भूमिगत जल, और महासागर शामिल हैं। जलचक्र, जल संतुलन, और जलविज्ञान भी इसके मुख्य तत्व हैं।
  4. पेडोलॉजी (Pedology): यह मिट्टी का अध्ययन है, जिसमें मिट्टी के गठन, संरचना, और प्रकार शामिल हैं। मिट्टी के प्रोफाइल, मिट्टी की उर्वरता, और भूमि उपयोग इसके महत्वपूर्ण पहलू हैं।
  5. जीवमंडल (Biogeography): यह पौधों और जीवों के वितरण और उनकी पारिस्थितिकी का अध्ययन है। इसमें विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों, वनस्पतियों, और जीव-जंतुओं की वितरण पद्धतियों का विश्लेषण शामिल है।
  6. समुद्री भूगोल (Oceanography): यह महासागरों और समुद्री प्रक्रियाओं का अध्ययन है। इसमें समुद्री जलवायु, समुद्री लहरें, धाराएं, और महासागरीय तल के रूप शामिल हैं। समुद्री जीवविज्ञान और समुद्री पारिस्थितिकी भी इसके अंतर्गत आते हैं।

भौतिक भूगोल के अन्य महत्वपूर्ण विषय

  1. जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव: भौतिक भूगोल में जलवायु परिवर्तन के कारणों, प्रभावों और संभावित समाधानों का अध्ययन किया जाता है।
  2. प्राकृतिक आपदाएं: इसमें भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, तूफान, बाढ़, और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं का विश्लेषण और इनके प्रबंधन के उपाय शामिल हैं।
  3. पर्यावरणीय संरक्षण: भौतिक भूगोल पर्यावरणीय संरक्षण और प्रबंधन के तरीकों का अध्ययन करता है, जिसमें पारिस्थितिक संतुलन, वन संरक्षण, और जल संसाधन प्रबंधन शामिल हैं।

निष्कर्ष

भौतिक भूगोल एक व्यापक और बहुआयामी विषय है जो पृथ्वी की सतह और उसकी प्रक्रियाओं के समग्र अध्ययन पर केंद्रित है। यह हमारे पर्यावरण को समझने और संरक्षण के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अध्ययन से हमें प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन करने, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने, और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग के उपायों को विकसित करने में मदद मिलती है।

प्रश्न 7: सागरीय लवणता को विस्तार से समझाइए

सागरीय लवणता महासागरीय जल में घुले हुए लवणों की मात्रा को दर्शाती है। यह एक महत्वपूर्ण महासागरीय गुण है जो जलविज्ञान, जलवायु विज्ञान, और समुद्री जीवविज्ञान के अध्ययन में प्रमुख भूमिका निभाता है। सागरीय लवणता को विस्तार से समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है:

सागरीय लवणता की परिभाषा

सागरीय लवणता (Salinity) को समुद्री जल में घुले हुए लवणों के ग्राम प्रति किलोग्राम जल (ग्राम/किलोग्राम या प्रैक्टिकल सालिनिटी यूनिट्स – PSU) के रूप में व्यक्त किया जाता है। औसत समुद्री जल की लवणता लगभग 35 PSU होती है, जिसका मतलब है कि 1 किलोग्राम समुद्री जल में 35 ग्राम लवण घुला होता है।

लवणता के प्रमुख तत्व

समुद्री जल में विभिन्न प्रकार के लवण पाए जाते हैं, जिनमें सोडियम क्लोराइड (NaCl), मैग्नीशियम सल्फेट (MgSO4), कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3), और पोटेशियम क्लोराइड (KCl) प्रमुख हैं। इनमें से सोडियम क्लोराइड सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है और यह समुद्री जल की कुल लवणता का लगभग 85% भाग बनाता है।

लवणता को प्रभावित करने वाले कारक

  1. वाष्पीकरण और वर्षा: वाष्पीकरण की दर बढ़ने से लवणता बढ़ती है, क्योंकि जल वाष्पित हो जाता है लेकिन लवण पीछे रह जाते हैं। इसके विपरीत, भारी वर्षा से लवणता घटती है क्योंकि ताजे पानी का प्रवाह समुद्री जल को पतला कर देता है।
  2. नदी जल का प्रवाह: नदियों का मीठा जल महासागरों में प्रवाहित होकर उनकी लवणता को घटाता है। विशेषकर डेल्टा क्षेत्रों में यह प्रभाव अधिक देखा जाता है।
  3. बर्फ का पिघलना और जमना: जब समुद्री बर्फ जमती है, तो लवणता बढ़ती है क्योंकि लवण पानी में घुली रहती है। इसके विपरीत, बर्फ के पिघलने से लवणता घटती है।
  4. समुद्री धाराएं: महासागरीय धाराएं लवणता को प्रभावित करती हैं। गर्म और ठंडी धाराओं के संचलन से विभिन्न क्षेत्रों में लवणता के स्तर बदलते रहते हैं।

लवणता के वितरण के पैटर्न

सागरीय लवणता भौगोलिक रूप से असमान होती है। इसके वितरण के कुछ प्रमुख पैटर्न निम्नलिखित हैं:

  1. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र: यहां वाष्पीकरण की दर उच्च होती है, जिससे लवणता भी उच्च होती है।
  2. ध्रुवीय क्षेत्र: यहां बर्फ के पिघलने और कम वाष्पीकरण के कारण लवणता कम होती है।
  3. समुद्री धाराओं का प्रभाव: गर्म जलधाराएं उच्च लवणता को ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर ले जाती हैं, जबकि ठंडी जलधाराएं कम लवणता को भूमध्य रेखा की ओर ले जाती हैं।

लवणता के प्रभाव

  1. घनत्व: लवणता जल के घनत्व को प्रभावित करती है। उच्च लवणता वाला जल अधिक घना होता है, जो महासागरीय संचलन को प्रभावित करता है।
  2. जीवविविधता: समुद्री जीवों के लिए लवणता एक महत्वपूर्ण कारक है। विभिन्न जीवों की लवणता सहनशीलता अलग-अलग होती है, जो उनके वितरण को प्रभावित करती है।
  3. जलवायु: लवणता जलवायु प्रणाली को प्रभावित करती है, विशेषकर महासागरीय धाराओं और वैश्विक तापमान वितरण में।

निष्कर्ष

सागरीय लवणता महासागरीय पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण गुण है जो जलविज्ञान, जीवविज्ञान, और जलवायु विज्ञान के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है। यह विभिन्न कारकों द्वारा नियंत्रित होती है और इसके वितरण का पैटर्न भौगोलिक स्थिति, वाष्पीकरण, वर्षा, और समुद्री धाराओं के प्रभाव के अनुसार बदलता रहता है। इसके अध्ययन से हमें महासागरीय प्रक्रियाओं और उनके वैश्विक प्रभावों को समझने में मदद मिलती है, जो समुद्री पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण

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