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VMOU ASSIGMENT Public Administration (I Year Examination) PA-01 Principles of Public Administration लोक प्रशासन के सिद्धांत

VMOU ASSIGMENT Public Administration

Public Administration (I Year Examination) PA-01 Principles of Public Administration लोक प्रशासन के सिद्धांत

Max Marks: 30
Note: The Question paper is divided into three sections A, B, and C.
Write answers as per the given instruction.
नोट: यह प्रश्न पत्र ‘A’, ‘B’ और ‘C’ तीन खंडों में विभाजित है। प्रत्येक खंड के निर्देशानुसार
प्रश्नों का उत्तर दीजिए।


Section-A / खंड-अ

(Very Short Answer Type Questions / अति लघु उत्तर वाले प्रश्न)

Note: Answer all questions. As per the nature of the question you delimit your answer in one
word,one sentence or maximum up to 30 words. Each question carries 1 mark.
नोट: सभी प्रश्नों का उत्तर दीजिए। आप अपने उत्तर को प्रश्नानुसार एक शब्द, एक वाक्य या अधिकतम 30 शब्दों
में
सीमित कीजिए। प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का है। 6×1=06

  1. प्रशासन को परिभाषित कीजिए।
    प्रशासन का अर्थ है संगठित ढंग से कार्यों को संपन्न करना, ताकि उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके।
  2. अभिप्रेरण से आप क्या समझते हैं?
    अभिप्रेरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्तियों को कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
  3. पदसोपान को परिभाषित करें।
    पदसोपान एक संगठनात्मक ढांचा है जिसमें अधिकार और जिम्मेदारियां ऊर्ध्वाधर रूप में वितरित होती हैं।
  4. आप अनौपचारिक संगठन से क्या समझते हैं?
    अनौपचारिक संगठन वह है जो व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर आधारित होता है, न कि आधिकारिक संरचना पर।
  5. सीईओ की क्या भूमिका है?
    सीईओ संगठन का शीर्ष कार्यकारी अधिकारी होता है, जो समग्र प्रबंधन और संचालन के लिए उत्तरदायी होता है।
  6. भारतीय लोक प्रशासन संस्थान कहाँ स्थित है?
    भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) नई दिल्ली में स्थित है।

Section-B / खंड-ब

(Short Answer Questions / लघु उत्तर वाले प्रश्न)

Note: Answer any four questions. Each answer should not exceed 100 words.
Each question carries 3 marks. 4×3=12
नोट: निम्नलिखित में से किसी चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए। आप अपने उत्तर को अधिकतम 100 शब्दों में सीमित कीजिए।
प्रत्येक प्रश्न 3 अंकों का है। 4×3=12

  1. लोक प्रशासन के क्षेत्र पर चर्चा करें।
    लोक प्रशासन का क्षेत्र व्यापक है और इसमें नीतियों का निर्माण, सार्वजनिक सेवाओं का प्रबंधन, संसाधनों का
  2. आवंटन, कानून और व्यवस्था बनाए रखना, और विकास कार्यों का संचालन शामिल है। यह सरकार और जनता
    के बीच संबंध को बनाए रखने का काम करता है और समाज के सभी क्षेत्रों में सुधार और प्रगति सुनिश्चित करता है।
  3. लोक प्रशासन और समाजशास्त्र के बीच संबंधों पर चर्चा करें।
    लोक प्रशासन और समाजशास्त्र के बीच घनिष्ठ संबंध है। समाजशास्त्र समाज के संरचनात्मक और क्रियात्मक पहलुओं
    का अध्ययन करता है, जबकि लोक प्रशासन इन सामाजिक संरचनाओं के संचालन और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
    समाजशास्त्र प्रशासनिक नीतियों के सामाजिक प्रभाव को समझने में मदद करता है और प्रशासनिक
    सुधारों के लिए सामाजिक संदर्भ प्रदान करता है।
  4. भर्ती के महत्व पर चर्चा करें।
    भर्ती प्रशासनिक प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है, क्योंकि यह उपयुक्त और योग्य व्यक्तियों को प्रशासनिक पदों पर
  5. नियुक्त करने की प्रक्रिया है। यह सुनिश्चित करता है कि प्रशासनिक कार्यों के लिए योग्य और सक्षम लोग उपलब्ध हों,
    जो संगठन की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाता है। सही भर्ती से संगठन में नैतिकता, दक्षता,
    और कार्य संतोष में वृद्धि होती है।
  6. शास्त्रीय दृष्टिकोण में फेयोल के योगदान पर चर्चा करें।
    हेनरी फेयोल को शास्त्रीय प्रशासनिक सिद्धांतों के अग्रणी माना जाता है। उनके प्रमुख योगदानों में
    प्रबंधन के 14 सिद्धांत शामिल हैं, जैसे एकता का आदेश, एकता का निर्देशन, अनुशासन, और केंद्रीयकरण।
    फेयोल ने प्रबंधन के कार्यों को पांच श्रेणियों में विभाजित किया: योजना बनाना, संगठित करना, आदेश देना,
    समन्वय करना, और नियंत्रण करना। उनके सिद्धांत आज भी प्रशासनिक और प्रबंधकीय प्रक्रियाओं में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
  7. समन्वय के महत्व के बारे में बताएं।
    समन्वय किसी भी संगठन के सुचारू और कुशल संचालन के लिए महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि संगठन
    के विभिन्न विभाग और कर्मचारी एक साथ मिलकर काम करें और संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करें।
    समन्वय से संसाधनों का अधिकतम उपयोग, समय की बचत, और संघर्षों की संभावना में कमी होती है।
    यह संगठन में कार्यकुशलता और प्रभावशीलता को बढ़ाता है।

Section-C / खंड-स

(Long Answer Questions / दीर्घ उत्तर वाले प्रश्न)

Note: Answer any two questions. You have to delimit your each answer maximum up to 400 words.
Each question carries 6 marks.
नोट: निम्नलिखित में से किसी दो प्रश्नों का उत्तर दीजिए। आपको अपने प्रत्येक उत्तर को अधिकतम 400 शब्दों में
सीमित करना है। प्रत्येक प्रश्न 6 अंकों का है। 2×6=12

  1. शास्त्रीय दृष्टिकोण के महत्व के बारे में बताएं।
    शास्त्रीय दृष्टिकोण प्रशासन के अध्ययन का सबसे प्रारंभिक और महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है, जिसे 19वीं और 20वीं शताब्दी
    में विकसित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाना था। शास्त्रीय दृष्टिकोण
    का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में निहित है: व्यवस्थित विश्लेषण:
    शास्त्रीय दृष्टिकोण ने प्रशासनिक प्रक्रियाओं और संरचनाओं के व्यवस्थित विश्लेषण पर जोर दिया। इससे प्रशासन को
    वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण से समझने में मदद मिली। प्रबंधन के सिद्धांत:
    इस दृष्टिकोण के प्रमुख योगदानकर्ताओं, जैसे हेनरी फेयोल और फ्रेडरिक टेलर, ने प्रबंधन के सिद्धांतों का विकास किया।
    इन सिद्धांतों ने प्रबंधन और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के लिए एक रूपरेखा प्रदान की। कार्य विभाजन और विशेषज्ञता:
    शास्त्रीय दृष्टिकोण ने कार्य विभाजन और विशेषज्ञता पर जोर दिया, जिससे कर्मचारियों की दक्षता और उत्पादकता बढ़ी।
    इससे प्रत्येक कर्मचारी अपने कार्य में विशेषज्ञता प्राप्त कर सका। प्राधिकरण और उत्तरदायित्व:
    शास्त्रीय दृष्टिकोण ने संगठन में प्राधिकरण और उत्तरदायित्व की स्पष्ट संरचना को महत्व दिया। इससे संगठनात्मक
    नियंत्रण और समन्वय में सुधार हुआ। केंद्रीकरण और अनुशासन:
    इस दृष्टिकोण ने केंद्रीकरण और अनुशासन पर भी जोर दिया। केंद्रीकरण से निर्णय लेने की प्रक्रिया में एकरूपता और
    समन्वय बना रहा, जबकि अनुशासन ने संगठन में नियमितता और आदेश बनाए रखा। प्रेरणा और प्रोत्साहन:
    शास्त्रीय दृष्टिकोण ने कर्मचारियों को प्रेरित और प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया,
    जिससे उनकी कार्यकुशलता और संतुष्टि में वृद्धि हुई। निष्कर्ष:
    शास्त्रीय दृष्टिकोण ने प्रशासनिक अध्ययन को एक वैज्ञानिक आधार प्रदान किया और संगठनात्मक दक्षता और
    प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण सिद्धांत और तकनीकें विकसित कीं। इस दृष्टिकोण के सिद्धांत और
    विधियाँ आज भी प्रशासन और प्रबंधन के क्षेत्र में प्रासंगिक हैं।

  2. वैज्ञानिक प्रबंधन में टेलर के योगदान के बारे में बताएं।
    फ्रेडरिक टेलर को वैज्ञानिक प्रबंधन के जनक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत और
    20वीं शताब्दी की शुरुआत में वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांतों का विकास किया। उनके प्रमुख योगदान निम्नलिखित
    हैं:
    कार्य अध्ययन:
    टेलर ने कार्य अध्ययन की अवधारणा विकसित की, जिसमें प्रत्येक कार्य को छोटे-छोटे घटकों में विभाजित किया जाता है।
    इससे कार्य की गति और दक्षता में सुधार हुआ।
    समय अध्ययन:
    टेलर ने समय अध्ययन का उपयोग करके प्रत्येक कार्य को पूरा करने के लिए आवश्यक समय का निर्धारण किया।
    इससे कार्य की उत्पादकता और दक्षता में वृद्धि हुई।
    मानकीकरण:
    टेलर ने औजारों, उपकरणों और कार्य विधियों के मानकीकरण पर जोर दिया। इससे उत्पादन प्रक्रियाओं में एकरूपता
  3. आई और गुणवत्ता में सुधार हुआ।
    प्रशिक्षण और विकास:
    टेलर ने कर्मचारियों के प्रशिक्षण और विकास पर बल दिया। उन्होंने कर्मचारियों को कुशल बनाने के लिए वैज्ञानिकप्रशिक्षण
  4. पद्धतियों का विकास किया।
    प्रोत्साहन योजना:
    टेलर ने प्रोत्साहन योजनाओं का भी विकास किया, जिसमें कर्मचारियों को उनकी कार्यकुशलता और
    उत्पादकता के आधार पर प्रोत्साहन दिया जाता था। इससे कर्मचारियों की प्रेरणा और उत्पादकता में वृद्धि हुई।
    प्रबंधन और श्रमिकों के बीच सहयोग:
    टेलर ने प्रबंधन और श्रमिकों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि प्रबंधन और श्रमिकों
    को मिलकर काम करना चाहिए ताकि संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
    वैज्ञानिक चयन:
    टेलर ने कर्मचारियों के वैज्ञानिक चयन पर बल दिया, जिसमें प्रत्येक कर्मचारी को उसकी योग्यता और क्षमता के
    आधार पर कार्य दिया जाता है। इससे संगठन की दक्षता और उत्पादकता में सुधार हुआ।
    निष्कर्ष:
    टेलर के वैज्ञानिक प्रबंधन सिद्धांतों ने उत्पादन प्रक्रियाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए और औद्योगिक प्रबंधन के
    क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके सिद्धांत आज भी उत्पादन और संचालन
    प्रबंधन में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं।
  5. औपचारिक संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
    औपचारिक संगठन एक संरचित और व्यवस्थित प्रणाली है जिसमें स्पष्ट रूप से परिभाषित नियम, नीतियाँ,
    और प्रक्रियाएँ होती हैं। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
    संरचित और व्यवस्थित:
    औपचारिक संगठन में कार्य, अधिकार, और जिम्मेदारियाँ स्पष्ट रूप से विभाजित और परिभाषित होती हैं।
    इससे संगठन में समन्वय और नियंत्रण बना रहता है।
    नियम और नीतियाँ:
    औपचारिक संगठन में कार्यों और प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट नियम और नीतियाँ होती हैं।
    इससे संगठन में अनुशासन और स्थिरता बनी रहती है।
    औपचारिक संचार:
    औपचारिक संगठन में संचार के चैनल स्पष्ट और संरचित होते हैं। सभी महत्वपूर्ण सूचनाएँ औपचारिक
    चैनलों के माध्यम से प्रसारित की जाती हैं।
    केंद्रीकरण:
    औपचारिक संगठन में केंद्रीकरण का महत्व होता है, जिसमें शीर्ष प्रबंधन निर्णय लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित
    करता है। इससे निर्णयों में एकरूपता और समन्वय बना रहता है।
    लक्ष्य उन्मुखता:
    औपचारिक संगठन में सभी गतिविधियाँ संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निर्देशित होती हैं। प्रत्येक कर्मचारी
    को अपने कार्य और उद्देश्यों के प्रति स्पष्टता होती है।
    निष्पादन मूल्यांकन:
    औपचारिक संगठन में कर्मचारियों के निष्पादन का नियमित मूल्यांकन किया जाता है। इससे कर्मचारियों
    की दक्षता और उत्पादकता में सुधार होता है।
    विभागीयकरण:
    औपचारिक संगठन में कार्यों को विभिन्न विभागों में विभाजित किया जाता है, जैसे उत्पादन, विपणन, वित्त,
    आदि। इससे कार्यों में विशेषज्ञता और दक्षता आती है।
    औपचारिक नेतृत्व:
    औपचारिक संगठन में नेतृत्व स्पष्ट और संरचित होता है। नेतृत्व की भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ स्पष्ट रूप
    से परिभाषित होती हैं।
    निष्कर्ष:
    औपचारिक संगठन एक संगठित और संरचित प्रणाली है जो संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक
    नियम, नीतियाँ, और प्रक्रियाएँ प्रदान करती है। इसकी विशेषताएँ संगठन में स्थिरता, अनुशासन, और दक्षता
    को बनाए रखने में सहायक होती हैं।
  6. संगठन के प्रकार के बारे में बताएं।
    संगठन विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जो उनकी संरचना, उद्देश्य, और संचालन के आधार पर विभाजित होते हैं।
    मुख्य रूप से संगठन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:
    औपचारिक संगठन:
    औपचारिक संगठन में स्पष्ट संरचना, नियम, और नीतियाँ होती हैं। यह संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए
    संगठित होता है और इसमें स्पष्ट रूप से परिभाषित भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ होती हैं।
    अनौपचारिक संगठन:
    अनौपचारिमक संगठन व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर आधारित होते हैं। यह औपचारिक संगठन के भीतर
    ही होते हैं और कर्मचारियों के बीच संचार और सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
    रेखा संगठन:
    रेखा संगठन में आदेश और नियंत्रण की एकल रेखा होती है, जिसमें शीर्ष प्रबंधन से निचले स्त
    र तक आदेश दिए जाते हैं। यह सरल और स्पष्ट संरचना होती है।
    कार्यात्मक संगठन:
    कार्यात्मक संगठन में कार्यों को विशेषज्ञता के आधार पर विभाजित किया जाता है। प्रत्येक विभाग या इकाई एक
    विशिष्ट कार्य या गतिविधि के लिए जिम्मेदार होती है।
    विभागीय संगठन:
    विभागीय संगठन में कार्यों को विभिन्न विभागों में विभाजित किया जाता है, जैसे उत्पादन, विपणन, वित्त, आदि।
    इससे कार्यों में विशेषज्ञता और दक्षता आती है।
    प्रोजेक्ट संगठन:
    प्रोजेक्ट संगठन अस्थायी संगठन होते हैं, जो किसी विशेष परियोजना या कार्य के लिए गठित किए जाते हैं।
    परियोजना के पूर्ण होने के बाद यह संगठन समाप्त हो जाते हैं।
    मिश्रित संगठन:
    मिश्रित संगठन में विभिन्न प्रकार के संगठनात्मक संरचनाओं का मिश्रण होता है। यह संगठनात्मक
    आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न संरचनाओं को अपनाता है।
    निष्कर्ष:
    विभिन्न प्रकार के संगठन अपनी-अपनी विशेषताओं और आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करते हैं। संगठन का
    प्रकार संगठनात्मक लक्ष्यों, कार्यों, और प्रबंधन की शैली के आधार पर चुना जाता है। प्रत्येक प्रकार की अपनी
    विशेषताएँ और लाभ होते हैं, जो संगठनात्मक दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने में सहायक होते हैं।

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